Monday, 14 September 2015

गालियों का मनोविज्ञान



गालियों का मनोविज्ञान
लोग गालियाँ क्यों देते हैं? इसकी व्याख्या करने की ज़रूरत नहीं। लोग गुस्से में गाली देते हैं। बहुत खीझ जाते हैं, झुंझला उठते हैं, किलस जाते हैं, फ्रस्ट्रेट हो जाते हैं, तब लोग गालियाँ देते हैं। गाली एक सेफ्टी वाल्व है, जिसके माध्यम से मन की भड़ास निकल जाती है। सुनने में गालियाँ चाहे जितनी खराब लगें, लेकिन यदि भाषा में गालियाँ न होतीं तो लोग अपना गुस्सा मुँह से, शब्दों या ध्वनियों के रूप में न निकालकर किसी और रूप में, मार-पिटाई के ज़रिए, खून-खराबा करके या किसी और विध्वंसक तरीके से निकालते। गाली का हमारे संसार में होना, एक प्रकार से अच्छा है।
गुस्से में ही नहीं, कई बार लोग प्यार में भी गाली देते हैं। विश्वास न हो तो बैंडिट क्वीन जैसी फिल्में देखिए। अपने देश का एक समाज ऐसा भी है, जो बहुत प्यार आने पर भी गाली देता है। 'साली.. बहुत नखरे करती है।'ऐसे डायलॉग तो आपने सुने ही होंगे।
खैर...यह तो केवल भूमिका है। असल सवाल यह है कि सारी गालियाँ किसी न किसी रूप में औरत जात के नाम क्यों हैं? ज्यादातर गालियों का केन्द्रीय भाव है सेक्स और सेक्स का केन्द्रीय भाव है औरत। जितनी भद्दी गाली होगी, उतना भद्दा होगा औरत के साथ सेक्स को जोड़ने का भाव।
सौम्यतावश मैं यहाँ उन गालियों का आख्यान, कथन या पुनर्कथन नहीं कर रहा। किन्तु अध्ययन करना चाहें तो करके देखें, हमारी सारी गालियों का केन्द्रीय पात्र कोई न कोई औरत है, चाहे वह माँ हो या बहन, या फिर बेटी। महिला के साथ गलत तरीके से यानी ज़बर्दस्ती, वीभत्स और कुत्सित सेक्स क्रिया का आख्यापन हमारे समाज में गाली है। इसमें दो बातें मुख्य रूप से उभर कर सामने आती हैं। पहली तो यह कि महिला सेक्स की विषयवस्तु है। और दूसरी यह कि सेक्स या वासना का संबंध स्थापित करने से महिला की पवित्रता भंग होती है, जो उसके लिए सबसे गर्हित स्थिति है।
इसका आशय यह हुआ कि महिला का अपमान करना है, उसे गौरव के पद से च्युत करना है तो उसके साथ ज़बर्दस्ती सेक्स संबंध बनाया जाए। यदि वह भी संभव न हो ऐसे सेक्स संबंध का उल्लेख करके उसे अपमानित किया जाए। पुरुष के साथ यह स्थिति नहीं है। कोई महिला यदि किसी पुरुष से नाराज हो तो वह ऐसी बात करने या कहने का सोचेगी भी नहीं, क्योंकि ऐसा करने से पुरुष की मर्यादा पर कोई आँच नहीं आएगी, अलबत्ता उसके पुंसत्व का और मंडन ही होगा. जबकि स्त्री के साथ ऐसा करने पर उसकी मर्यादा तार-तार हो जाएगी। यही है हमारा महिला-विरोधी और पुरुष-वादी सोच।
यही कारण है कि समाज में जितनी भी गालियाँ हैं, उनमें से अधिकतर के केन्द्र में महिला है और उसके भी केन्द्र में है सेक्स, ऐसा सेक्स जो महिला की मर्यादा को चिन्दी-चिन्दी कर देता है। पुरुषों पर केन्द्रित एकाधी गाली है भी तो वह भी सेक्स (अस्वाभाविक सेक्स) पर केन्द्रित। 
पुरुष भी अपने परिवार की महिलाओं की अस्मत के प्रति सचेत होता है। इसलिए जब उनको इंगित करके कोई गाली देता है तो वह तिलमिला उठता है। गाली देनेवाला गाली के माध्यम से प्रतिद्वन्द्वी पुरुष के अहं पर चोट करके उसे मानसिक पीड़ा देना चाहता है। यह पीड़ा सबसे ज्यादा तब सालती है, जब महिलाओं को लेकर अनैतिक सेक्स को केन्द्र में रखते हुए कोई गाली देता है।  तो  यह है गालियों का मनोविज्ञान।

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