Saturday, 24 October 2015

वाइपर को कछना क्यों न कहें?



वाइपर को कछना क्यों न कहें?

प्रत्येक अंग्रेजी शब्द के लिए संस्कृत धातु वाले हिन्दी प्रतिशब्दों की खोज करना या उनका सृजन करना हमारी भूल है। इससे भाषा में क्लिष्टता और कृत्रिमता आती है, जिसका इलज़ाम हिन्दी पर प्रायः लगाया जाता है। हिन्दी से विद्वेष रखनेवाले और किसी न किसी बहाने हिन्दी को उसके पद से च्युत करने की टोह में घूमने वाले अंग्रेजी प्रेमियों के लिए तो हिन्दी से कन्नी काटने का यह और भी बढ़िया बहाना बन जाता है।

अंग्रेजी के ऐसे बहुत-से शब्द हैं, जिनके प्रतिशब्द हमारे पास हैं ही नहीं, या हैं तो विभिन्न कारणों से वे हमारे व्यवहार-जगत का हिस्सा नहीं हैं। मसलन वाइपर शब्द को लीजिए। वाइपर यानी रबड़ की क्षैतिज पट्टी में नब्बे अंश के कोण पर हत्था लगाकर बनाया गया वह यंत्र जिससे किसी सपाट और गीली यानी पानी युक्त सतह को सुखाया जा सकता है। बारिश के दिनों में कार चलाते समय हमें बार-बार वाइपर चलाने की ज़रूरत पड़ती है। वाइपर कार के शीशे पर पड़े पानी और गंदगी को काछ-पोंछ देता है।

ऐसे ही वाइपर आजकल रसोईघर, स्नानघर, आँगन आदि का पानी काछने के काम आते हैं। ज़रूरत के अनुसार वाइपर और उनके हत्थे छोटे-बड़े बनाए जाते हैं। जहाँ-जहाँ चिकनी सतह है, वहाँ-वहाँ वाइपर है। स्नान-घर में पानी ज्यादा देर टिका रह जाए तो फिसलन हो जाती है। ऐसे में यदि कोई फिसल गया तो उसका कूल्हा खिसक सकता है, गिरने से कूल्हे की हड्डी टूट सकती है। बेहतरी इसी में है कि वाइपर चलाकर स्नान-घर की फर्श सूखी रखी जाए। इसी प्रकार रसोईघर में काले या हरे ग्रेनाइट की पट्टी पर वाइपर मार देने से पूरा पानी सूख जाता है और पट्टी चमकने लगती है।

सवाल यह है कि वाइपर को हिन्दी में कछना या कछनी क्यों नहीं कह सकते? वाइपर करता क्या है? काछता ही तो है। काछने से कीचड़-कर्दम, पानी आदि हट जाता है और सतह साफ हो जाती है। काछना क्रिया हिन्दी प्रान्तों की लोक-भाषा में खूब चलती रही है। इस नाते जिस वस्तु से काछा जाता है, उसके छोटे संस्करण को कछनी और बड़े को कछना कहने में क्या हर्ज़ है? कुछ हिन्दी-भाषियों को आपत्ति हो सकती है कि यह शब्द बहुत परिष्कृत यानी संस्कृत की मूल धातु वाला नहीं है, इस नाते यह भदेस और गँवारू लगता है। ठीक बात।

लेकिन बताते चलें कि जैसे कृषक शब्द में कर्षण यानी खींचने (हल खींचने) का भाव निहित है, वैसे ही काछना शब्द का विकास भी कर्षण से हुआ प्रतीत होता है। कर्ष से काछ बनना सहज ही संभव है। हमारे लोक-जीवन में ऐसे अनेक शब्द प्रचलित हैं। बस ज़रूरत है तो इस बात की कि हम अंग्रेजी को अपना माई-बाप मानना बंद करें और अपनी भाषाओं, अपनी परंपरा, अपने मूल्यों की भी थोड़ी इज्जत करें। 

तो आइए वाइपर के स्थान पर कछना या कछनी शब्द इस्तेमाल करें।

Sunday, 11 October 2015

shabd-sandhan: हंसी और हसीं, खान और खां

shabd-sandhan: हंसी और हसीं, खान और खां: हंसी और हसीं, खान और खां हिन्दी में बिन्दी का बहुत महत्त्व है। लोगों का यह मानना है। और नागरी लिपि के तथाकथित मानकीकरण की प्रक्रिया ...

हंसी और हसीं, खान और खां



हंसी और हसीं, खान और खां
हिन्दी में बिन्दी का बहुत महत्त्व है। लोगों का यह मानना है। और नागरी लिपि के तथाकथित मानकीकरण की प्रक्रिया में यह महत्त्व कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पंचमाक्षर के स्थान पर बिन्दी भिड़ा देने से हिन्दी में ढेर सारी अमानकता और अवैज्ञानिकता भी घर कर गई है। यही स्थिति चन्द्रबिन्दी के स्थान पर अनुस्वार यानी सामान्य बिन्दी लगाने से भी निर्मित होती है।
इसका एक उदाहरण है हंस और हँस। जहाँ हंस का उच्चारण हन्स भी होता है, वहीं हँस में कोई दुविधा नहीं है। हँस लिखने से सीधे-सीधे हास या अंग्रेजी शब्द लॉफ्टर के हिन्दी अर्थ का बोध होता है। हंस लिखने से पहले तो नीर-क्षीर विवेक-संपन्न पक्षी का ही बोध होता था, जो देवी सरस्वती की सवारी भी कहा जाता है। लेकिन बाद में मानकीकरण के नाम पर हँस के स्थान पर हंस को भी मान्य स्वीकार कर लिया गया। इससे दुविधा पैदा हुई है और हंस का अर्थ पक्षी वाला है या हंसने की क्रिया वाला, यह जानने के लिए शब्द के प्रयोग का पूरा संदर्भ जानना ज़रूरी हो जाता है। व्याकरणिक दृष्टि से मादा हंस पक्षी को हंसी कहा जा सकता है (हंसिनी तो कहते ही हैं)।
खैर...यहाँ तो हमारा उद्देश्य हंसी और हसीं का भेद करना है। एक में बिन्दी ह पर लगी है, जबकि दूसरे में सी पर। यदि ध्यान न दिया जाए और बिन्दी का स्थान गलती से इधर का उधर हो जाए तो पूरा अर्थ ही बदल जाएगा। हंसी का अर्थ है हँसना क्रिया से निर्मित संज्ञा, यानी हँसने की क्रियार्थक संज्ञा। इसे स्पष्ट करना हो तो हम इसे वाक्य में प्रयोग कर सकते हैं, जैसे- उसकी हँसी बहुत सुन्दर है। बात-बात पर हँसी-ठिठोली करना अच्छी बात नहीं है। यहाँ हँसी (या हंसी) शब्द का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है।
इससे बिल्कुल अलग शब्द है हसीं या हसीन। दरअसल उर्दू के जो शब्द न से समाप्त होते हैं उनमें प्रायः अन्त्य ध्वनि न के हलन्त-युक्त होने के कारण, न के अनुस्वार में परिवर्तित होने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। हसीन का हसीं और जवान का जवां बन जाना इसी प्रवृत्ति के कारण है। हिन्दी भाषा की एक फिल्म का नाम था- तुम हसीं मैं जवां। इस जुमले को यदि कायदे से लिखा जाए तो होगा- तुम हसीन मैं जवान।
हसीन और जवान की तर्ज़ पर खां शब्द में भी भ्रम होता है। सच कहें तो सही शब्द तो खां ही है, लेकिन अच्छे-अच्छे खां लोगों को शायद इसकी खबर नहीं है। भोपाल के लोग अब भी पूछते हैं- क्यों खां..। तुर्रम-खां, तीस-मार खां, ये सब जुमले इस बात की तसदीक करते हैं कि असल शब्द तो खां ही है, खान नहीं। (खान तो खदान को कहते हैं)। लेकिन अब हम हिन्दुस्तानी लोग हिन्दी को भी रोमन के मार्फत लिखने-पढ़ने लगे हैं। इसलिए khan को देवनागरी में खान लिख देते हैं। वरना होना तो इसे खां ही चाहिए था। हंसी का अर्थ तो हमने ऊपर बता दिया, हसीं का अर्थ बताने की ज़रूरत शायद ही पड़े। फिर भी बात को पूरा करने के लिहाज़ से कहने की ज़ुर्रत करते हैं कि इसका अर्थ है-सुन्दर, खूबसूरत, दिलकश, लुभावनी आदि-आदि।