हंसी और हसीं, खान और खां
हिन्दी में बिन्दी का बहुत महत्त्व है। लोगों का
यह मानना है। और नागरी लिपि के तथाकथित मानकीकरण की प्रक्रिया में यह महत्त्व कुछ
ज्यादा ही बढ़ गया है। पंचमाक्षर के स्थान पर बिन्दी भिड़ा देने से हिन्दी में ढेर
सारी अमानकता और अवैज्ञानिकता भी घर कर गई है। यही स्थिति चन्द्रबिन्दी के स्थान
पर अनुस्वार यानी सामान्य बिन्दी लगाने से भी निर्मित होती है।
इसका एक उदाहरण है हंस और हँस। जहाँ हंस का
उच्चारण हन्स भी होता है, वहीं हँस में कोई दुविधा नहीं है। हँस लिखने से
सीधे-सीधे हास या अंग्रेजी शब्द लॉफ्टर के हिन्दी अर्थ का बोध होता है। हंस लिखने
से पहले तो नीर-क्षीर विवेक-संपन्न पक्षी का ही बोध होता था, जो देवी सरस्वती की
सवारी भी कहा जाता है। लेकिन बाद में मानकीकरण के नाम पर हँस के स्थान पर हंस को
भी मान्य स्वीकार कर लिया गया। इससे दुविधा पैदा हुई है और हंस का अर्थ पक्षी वाला
है या हंसने की क्रिया वाला, यह जानने के लिए शब्द के प्रयोग का पूरा संदर्भ जानना
ज़रूरी हो जाता है। व्याकरणिक दृष्टि से मादा हंस पक्षी को हंसी कहा जा सकता है
(हंसिनी तो कहते ही हैं)।
खैर...यहाँ तो हमारा उद्देश्य हंसी और हसीं का
भेद करना है। एक में बिन्दी ह पर लगी है, जबकि दूसरे में सी पर। यदि ध्यान न दिया
जाए और बिन्दी का स्थान गलती से इधर का उधर हो जाए तो पूरा अर्थ ही बदल जाएगा।
हंसी का अर्थ है हँसना क्रिया से निर्मित संज्ञा, यानी हँसने की क्रियार्थक
संज्ञा। इसे स्पष्ट करना हो तो हम इसे वाक्य में प्रयोग कर सकते हैं, जैसे- उसकी
हँसी बहुत सुन्दर है। बात-बात पर हँसी-ठिठोली करना अच्छी बात नहीं है। यहाँ हँसी
(या हंसी) शब्द का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है।
इससे बिल्कुल अलग शब्द है हसीं या हसीन। दरअसल
उर्दू के जो शब्द न से समाप्त होते हैं उनमें प्रायः अन्त्य ध्वनि न के
हलन्त-युक्त होने के कारण, न के अनुस्वार में परिवर्तित होने की प्रवृत्ति दिखाई
देती है। हसीन का हसीं और जवान का जवां बन जाना इसी प्रवृत्ति के कारण है। हिन्दी
भाषा की एक फिल्म का नाम था- तुम हसीं मैं जवां। इस जुमले को यदि कायदे से लिखा
जाए तो होगा- तुम हसीन मैं जवान।
हसीन और जवान की तर्ज़ पर खां शब्द में भी भ्रम
होता है। सच कहें तो सही शब्द तो खां ही है, लेकिन अच्छे-अच्छे खां लोगों को शायद
इसकी खबर नहीं है। भोपाल के लोग अब भी पूछते हैं- क्यों खां..। तुर्रम-खां, तीस-मार
खां, ये सब जुमले इस बात की तसदीक करते हैं कि असल शब्द तो खां ही है, खान नहीं। (खान
तो खदान को कहते हैं)। लेकिन अब हम हिन्दुस्तानी लोग हिन्दी को भी रोमन के मार्फत
लिखने-पढ़ने लगे हैं। इसलिए khan को देवनागरी में खान लिख देते हैं। वरना होना तो
इसे खां ही चाहिए था। हंसी का अर्थ तो हमने ऊपर बता दिया, हसीं का अर्थ बताने की
ज़रूरत शायद ही पड़े। फिर भी बात को पूरा करने के लिहाज़ से कहने की ज़ुर्रत करते
हैं कि इसका अर्थ है-सुन्दर, खूबसूरत, दिलकश, लुभावनी आदि-आदि।
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