ड्राइव करना, ईट करना, ड्रिंक करना, टीच करना, लव करना, हेट करना- यानी हिन्दी को किल करना
गुजराती में बस, ट्रक, कार, स्कूटर, मोटरसाइकिल यानी हर वाहन को ‘हाँका’ जाता है। ज़ाहिर है बैलगाड़ी,
घोड़ागाड़ी को भी हाँका जाता है। अपने उत्तर प्रदेश में पशुओं को हाँका जाता है।
पशु-चालित वाहनों में जुते पशुओं को तो निश्चय ही हाँका जाता है। गुजरात की सड़कों पर अकसर लिखा
मिलता है- गाड़ी धीरे हाँकवा नु। यानी गाड़ी धीरे चलाएँ।
‘मदर इण्डिया’ फिल्म का प्रसिद्ध गीत है- ‘गाड़ीवाले गाड़ी धीरे हाँक
रे!’ इस गीत में बात गाड़ी हाँकने की हो रही है, फिर चाहे उसे बैल खींच रहे हों, या
खच्चर, घोड़े, ऊँट या भैंसा। गाड़ी को नियन्त्रित करनेवाला व्यक्ति यानी चालक
(गाड़ीवान, कोचवान आदि) गाड़ी में जुते पशुओं को अपनी आवाज, टिटकारी, पुचकार,
चाबुक या छड़ी के माध्यम से इच्छित दिशा में, अपने गन्तव्य तक ले जाता है। यही
क्रिया ‘गाड़ी हाँकना’ कहलाती है।
ग्रामीण क्षेत्रों
में गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं को हाँकने के प्रसंग प्रायः आते हैं। दुष्ट प्रकृति
के लोग अपनी पशुओं को किसी दूसरे की फसलों में हाँककर उसकी खड़ी फसल चरवा डालते
हैं। वहीं पशुओं को खेत से बाहर निकालने अथवा घऱ या मैदान की ओर ले जाने की क्रिया
को भी हाँकना कहा जाता है। प्रायः लोग कहते मिलते हैं- अरे बाबू, ज़रा हमारी गायों
को हाँक देना।
गप्पें मारने या
छोटी-सी बात को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बोलने को भी हाँकना कहा जाता है, जैसे- वह बहुत
लम्बी-लम्बी हाँक रहा था। यानी वह बातों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा था, जितनी वे
वास्तविक जीवन में हो नहीं सकतीं या वैसा होना सम्भव नहीं है।
हिन्दी के
शब्द-निर्माता, हिन्दी विद्वान, भाषाविद्, शिक्षक, प्रचारक—प्रसारक और स्वनामधन्य
आचार्यों की बुद्धि अंग्रेजी शब्द देखते ही कुन्द हो जाती है। वे हिन्दी, द्रविड़
परिवार अथवा संस्कृत की सहोदरा भारतीय भाषाओं में अंग्रेजी के प्रतिशब्दों का
संधान नहीं करते। अंग्रेजी शब्दों के साथ ‘करना, देना, लेना’ जैसे शब्द जोड़कर उनकी क्रिया या क्रियार्थक
संज्ञा बनाने का बड़ा ही रामबाण नुस्खा उन्हें बता दिया गया है। इसलिए ‘हाँकना’ जैसा कारगर शब्द रहते हुए
भी हम सभी वाहनों को ‘ड्राइव करते’ हैं, ‘सिग्नल देते’ हैं, लेफ्ट को ‘टर्न’ करते हैं और भाषा को ‘लर्न’ करते हैं। इसी प्रकार हम
हिन्दी व इतर भारतीय भाषाओं के शब्द-न्यूनत्व की समस्या को ‘सॉल्व कर लेते’ हैं।
कोई आश्चर्य नहीं कि
हमारे घरों में माताएँ अपने बच्चों को मिल्क ड्रिंक कराती हैं, रोटी ईट कराती हैं,
और होमवर्क फिनिश कराती हैं।
गुजराती समाज से बहुत-सी अच्छी बातें सीखी जा सकती हैं, जिसमें निज भाषा—प्रेम
भी एक है। महात्मा गाँधी ने अँगरेजी के व्यामोह से निकलने की वकालत इसीलिए की थी।
और गुजराती मूल के नरेन्द्र भाई मोदी इसीलिए दुनिया के बड़े-बड़े मंचों पर अपनी
बात हिन्दी में कहते हैं। अटलबिहारी बाजपेयी ने एक बार संयुक्त राष्ट्र संघ को
सम्बोधित किया था, जिसकी चर्चा हम आज तक करते हैं। उसके बरअक्स मोदीजी ने कितनी
जगहों पर हिन्दी बोली है! तो क्या हम ड्राइव करना छोड़कर ‘हाँकना’ नहीं लिख सकते? लिख सकते हैं, बशर्ते हमें अपनी
भाषा और शब्द-सामर्थ्य पर पर्याप्त गर्व हो। हमारा आत्माभिमान जीवित हो।
ऐसा तो नहीं कि ईट करना, ड्रिंक करना, टीच करना, किल करना, लव करना, हेट करना, स्विच ऑफ करना, कुक करना, सर्व करना, सेव करना, डैमेज करना, पेंट करना, पिस करना, शिट करना, स्पिट करना, आदि-आदि के लिए हमारे पास अपनी स्वदेशी भाषाओं में शब्द ही नहीं हैं।
बहुतेरे शब्द हैं। और 'करना' की बैसाखी के बिना बोले या लिखे जाएँ तो बहुत जबरदस्त प्रभाव छोड़ते हैं, किन्तु हमने ही उन शब्दों से नाता तोड़ लिया है। सच कहें तो हमने अपने जातीय अभिमान और आत्म-गौरव से भी सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया है!
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