आजी यानी दादी (मराठी और भोजपुरी, दोनों में)
यह देखकर आश्चर्य होता है कि मराठी और भोजपुरी के बहुत से शब्दों का अर्थ एक ही है। ये दोनों भाषाएं जहाँ बोली जाती हैं, उन दोनों क्षेत्रों के बीच हजार से अधिक किलोमीटर की भौगोलिक दूरी है। फिर भी दोनों भाषाओं में कई शब्दों का एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाना आश्चर्यजनक लगता है। उससे भी बड़ा आश्चर्य यह कि दोनों भोगोलिक क्षेत्रों के बीच कहीं भी उक्त शब्दों का प्रयोग उसी अर्थ में नहीं होता, जिस अर्थ में इन दो भाषाओं में होता है।
उदाहरण के लिए आजी शब्द को ही लें। मराठी और भोजपुरी (जो आजमगढ़, जौनपुर, बनारस, गाजीपुर, गोरखपुर, मऊ आदि जिलों में बोली जाती है), दोनों भाषाओं में आजी का अर्थ है दादी।
चिपरी यानी उपला (मराठी और भोजपुरी, दोनों में)
गाय-भैंस के गोबर को पाथकर या तो लंबा आकार दिया जाता है या गोल। इन्हें धूप में सुखाकर रख लिया जाता है। गाँवों में अब भी इन्हें चूल्हे में जलाकर भोजन पकाया जाता है। कुछ लोग इन्हें ही कण्डा कहते हैं, किन्तु कण्डे संकल्पना कुछ अलग है। दरअसल मैदान में चरने गए मवेशी जो गोबर कर आते हैं, वह भ्री प्राकृतिक रूप से सूखकर जलाने के काम आता है। इसी प्राकृतिक रूप से सूखे गोबर के पिण्ड को कण्डा कहते हैं। मान्यता है कि ऐसे कण्डों को बीनकर लाया जाए और उन्हें जलाकर उस आग पर आयुर्वेदिक दवाइयाँ, अवलेह आदि तैयार किए जाएं तो वे बहुत गुणकारी होते हैं। खैर...
जो गोबर गोल-गोल, यानी रोटी की तरह गोल, किन्तु कुछ मोटे आकार में पाथकर सुखाया जाता है, उसे भोजपुरी में चिपरी कहते हैं। मजे की बात यह है कि इसे मराठी में भी चिपरी ही कहते हैं। हिन्दी में इन्हें उपले कहते हैं।
आवा यानी आओ (मराठी और भोजपुरी दोनों में)
भोजपुरी में किसी को पास बुलाना होता है, तो कहते हैं- आवा। मराठी में भी इस शब्द का यही अर्थ है।
बसा यानी बैठो (मराठी और भोजपुरी, दोनों में)
भोजपुरी और मराठी (साथ ही गुजराती व बांगला में भी-किंचित ध्वनि परिवर्तन के साथ) बसा का अर्थ है बैठो।
आवा यानी आओ (मराठी और भोजपुरी दोनों में)
भोजपुरी में किसी को पास बुलाना होता है, तो कहते हैं- आवा। मराठी में भी इस शब्द का यही अर्थ है।
बसा यानी बैठो (मराठी और भोजपुरी, दोनों में)
भोजपुरी और मराठी (साथ ही गुजराती व बांगला में भी-किंचित ध्वनि परिवर्तन के साथ) बसा का अर्थ है बैठो।
भोजपुरी और मराठी, दोनों भाषाओं के ऐसे बहुत से समानार्थी शब्द होंगे। इससे इन दोनों ही नहीं, बल्कि प्रायः सभी भारतीय भाषाओं में पारस्परिक एकात्मकता का पता चलत है।