बीमा
बीमा शब्द फारसी के बीम से बना है, जिसका अर्थ होता है भय या डर। बीमा हम इसलिए कराते हैं कि बीमित वस्तु अथवा व्यक्ति के अंग, जीवन आदि को किसी प्रकार की आंशिक अथवा पूर्ण क्षति पहुँचे तो उस क्षति की कुछ हद तक भरपाई हो सके।
यदि हमें अपने किसी अंग, जीवन अथवा वस्तु, वाहन, सम्पत्ति आदि के क्षतिग्रस्त अथवा पूर्णतया नष्ट होने का भय न हो तो हम बीमा क्यों कराएँ! लिहाज़ा बीमा का केन्द्रीय तत्व है भय।
जीवन बीमा वाले कहते हैं, बीमा आग्रह की विषयवस्तु है- Insurance is a matter of solicitation.
हम कहते हैं बीमा डर को पार पाने का साधन है। जिसे जितना अधिक डर लगता है वह उतना बड़ा बीमा कराता है (बशर्ते वह बीमा का प्रीमियम भरने में सक्षम हो)।
धन्धेबाज और चालू लोग हर जगह अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। बीमा-क्षेत्र में भी ऐसा होता है। पता चला कि अपने खाली गोदाम में आग लगा दी और लाखों रुपये का दावा ठोक दिया। गाड़ी को खुद ही जला दिया, सर्वेयर से मिलकर बीमा कंपनी से पूरा पैसा वसूललिया। और तो और कुछ लोग बीमे की राशि पाने के लिए अपने नजदीकी लोगों की दुर्घटना तक करा डालते हैं।
बहरहाल, यदि डर न हो तो कोई बीमा न कराए।
कुछ लोग सोचते हैं कि बीमा एक प्रकार का निवेश है। बीमा कंपनियाँ भी इस तरह की योजनाएं लाकर लोगों को आकर्षित करती हैं। सच्चाई यह है कि बीमा प्रीमियम पर जो भी राशि आपको मिलती है, वह साधारण मीयादी जमा (फिक्स्ड) डिपॉजिट से भी बहुत कम (ब्र्याज) दर पर मिलती है। इसलिए यह एक भ्रामक अवधारणा है कि बीमा कोई निवेश है।
मैं एक बीमा कंपनी के कार्यालय में गया तो देखता हूँ कि एक एएओ के पीछे ऊपर दीवार पर यमराज की तस्वीर टँगी है। यम का डर बड़े-बड़ों को सीधा कर देता है। मृत्यु न हो तो लोग सारे धर्म-कर्म छोड़ दें। ज्यादातर लोग सीधी राह न चलें और सारा समाज अनाचार का आगार बन जाए।
किसी भले आदमी ने परलोग, स्वर्ग और बैकुण्ठ की परिकल्पना करके उसे पाने के लिए सदाचार और सन्मार्ग की अवधारणा को जन्म दिया। इसी प्राप्य की आकांक्षा में लोग कुमार्गी से सन्मार्गी बनने को प्रेरित हुए।
यही हाल बीमा का है।
आदमी सोचता है यदि दुर्दैव से मेरी मृत्यु हो गई तो? तो मेरे घर-परिवार का खर्च कैसे चलेगा? इसलिए बीमा कंपनी वाले उसे पट्टी पढ़ाते हैं- यदि आपकी आय इतनी है तो कम से कम इतनी राशि का बीमा अवश्य कराएँ, ताकि दुर्भाग्य से आपके न रहने पर भी आपके परिवार को इतनी रकम तो हर महीने मिलती ही रहे।
बड़ी-बड़ी नामी गिरामी हस्तियाँ अपने शरीर के विभिन्न अंगों, यहाँ तक कि नाखून आदि का भी बीमा कराते हैं, क्योंकि उन्हें डर होता है कि यदि वह बेशकीमती अंग न रहा तो वे भी कौड़ी के तीन हो जाएँगे।
जीवन-बीमा की त्रासदी यह है कि उसकी रकम पाने के लिए व्यक्ति को मरना पड़ेगा। और किसी भी कीमत पर मरना कौन चाहता है!
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