Wednesday, 30 September 2015

shabd-sandhan: गहन और सघन

shabd-sandhan: गहन और सघन: गहन और सघन अपने साथियों के अनुवाद-कार्य की जाँच करते समय प्रायः मुझे ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जब वे लिखना कुछ चाहते हैं  और लिख कुछ जाते हैं...

गहन और सघन



गहन और सघन
अपने साथियों के अनुवाद-कार्य की जाँच करते समय प्रायः मुझे ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है, जब वे लिखना कुछ चाहते हैं जबकि लिख कुछ और जाते हैं। ऐसी स्थिति इसलिए पैदा होती है, क्योंकि वे अपने काम की व्यस्तता के कारण किंचित असावधान हो जाते हैं और केवल ध्वनि अथवा उच्चारण-साम्य के कारण शब्दों का गलत प्रयोग कर देते हैं। अज्ञानवश वे ऐसा करते हैं, यह मानने का तो कोई कारण ही नहीं है।
उदाहरण के लिए गहन और सघन शब्दों को लेते हैं। गहन का अंग्रेजी प्रतिशब्द है intensive, जबकि सघन का प्रतिशब्द है dense. अन्य प्रतिशब्द भी हैं, जिनका जिक्र हमने आगे किया है।
गहन का संबंध गहराई से है। उदाहरण देकर इसे और अच्छी तरह समझा जा सकता है। मसलन यदि किसी व्यक्ति को किसी विषय की बहुत अच्छा जानकारी हो तो हम कहते हैं उनको इस विषय का गहन ज्ञान है, या उन्होंने इस विषय का गहन अध्ययन किया है। इस प्रकार गहनता का संबंध विषय या मामले की गंभीरता और गूढ़ता से है। अंग्रेजी में गहन के अन्य प्रतिशब्द हैं- deep, intricate, impregnable, obscure, mysterious और dense (महेन्द्र चतुर्वेदी और डॉ. भोलानाथ तिवारी) इन प्रतिशब्दों में शेष तो उपयुक्त प्रतीत होते हैं किन्तु dense नहीं।
सघन का अर्थ है जो घना हो, यानी जिसमें किसी तत्व का घनापन हो। इसका अंग्रेजी प्रतिशब्द है dense.
कामायनी शीर्षक महाकाव्य के प्रारंभ में जल-प्रलय के पश्चात् एकाकी, चिन्ताकुल मनु का वर्णन करते हुए महाकवि जयशंकर प्रसाद ने लिखा है-
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर
बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष भीगे नयनों से
देख रहा था प्रलय-प्रवाह।
नीचे जल था, ऊपर हिम था
एक तरल था, एक सघन।
एक तत्व की ही प्रधानता
कहो उसे जड़ या चेतन।
जल नामक पदार्थ (H2O) के तीन रूप होते हैं- वाष्प, जल और बर्फ। नीचे तरल था यानी जल और ऊपर सघन था यानी हिम या बर्फ। प्रसाद ने ही आँसू शीर्षक अपनी कविता में लिखा था- जो घनीभूत पीड़ा थी, मस्तक में स्मृति-सी छाई। दुर्दिन में आँसू बनकर, वह आज बरसने आई। यहाँ घनीभूत होने से आशय है संघनन (condensation). जल-वाष्प जब संघनित हो जाते हैं तो वर्षा की बूँदों, ओला-वृष्टि, हिम-पात आदि विभिन्न रूपों में संघनन की प्रक्रिया संपन्न होती है।
इस प्रकार सघन का आशय है परस्पर बहुत नजदीक-नजदीक होना, घना होना। इसीलिए जब जनसंख्या के घनत्व की बात होती है तो बताया जाता है कि प्रति किलोमीटर भू-भाग में कितने मनुष्य रहते हैं। जनसंख्या का घनत्व यानी भूमि के एक निर्धारित टुकड़े पर निवास करनेवाले व्यक्तियों की संख्या का घनापन। बहुत संभव है कि घन यानी बादल शब्द में भी वाष्प-कणों की सघनता का ही भाव निहित हो।
इसलिए जब हम अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करें तो ध्यान रखना चाहिए कि We are making intensive efforts का अनुवाद 'हम सघन प्रयास कर रहे हैं' नहीं होगा। उपयुक्त अनुवाद होगा- 'हम गहन प्रयास कर रहे हैं।' इसी प्रकार Intensive Care Unit का हिन्दी अनुवाद गहन चिकित्सा कक्ष होना चाहिए, न कि सघन चिकित्सा कक्ष।
सतपुड़ा के सघन वनों के बारे में कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने कविता लिखी। यह वाक्य ठीक है, बजाय यह लिखने के कि सतपुड़ा के गहन वनों पर उन्होंने कविता लिखी। गहन को ध्वनि-साम्य के कारण घन या घना समझने की भूल न की जाए। गुरुवर महेन्द्र चतुर्वेदी और डॉ. भोलानाथ तिवारी ने अपने हिन्दी-अंग्रेजी शब्द-कोश में सघन के अंग्रेजी प्रतिशब्दों में dense और thick को स्थान दिया है। यह तो ठीक है। किन्तु intensive को वहाँ रखना ठीक नहीं लगता।

Tuesday, 29 September 2015

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सरकार और शासन शब्द



सरकार और शासन

एक ब्लॉग पर सरकार शब्द को संस्कृत के श्रीकार्य या श्रीकरः से व्युत्पन्न सिद्ध किया गया है। इस शब्द का विकास कुछ इस प्रकार दर्शाया गया है- श्रीकार्य> श्रीकरः > श्रिकर>सरकर >सरकार। हो सकता है सरकारशब्द की व्युत्पत्ति ऐसे हुई हो। न जाने क्यों हम भारत-वासियों और खासकर हिन्दी वालों को यह लगता है कि दुनिया में ज्ञान के नाम पर जो कुछ है वह सब संस्कृत में ही संकेन्द्रित है। मुझे डर है कि कहीं सरकार शब्द की व्युत्पत्ति खोजने के क्रम में भी तो यही नहीं कर दिया गया?
मुझे लगता है कि सरकार शब्द को फारसी भाषा से गृहीत मानने में कुछ भी अनुचित नहीं है। फारसी में कार शब्द का इस्तेमाल कार्यया कामआदि के लिए होता है। इसीलिए वहाँ वर्कशॉप को कहा जाता है कारखाना, डीड या डूइंग्स का अर्थ है- कारनामा या कारगुज़ारी। इसी प्रकार जो (व्यक्ति या सत्ता) कुछ भी करने में सक्षम है, उसे कहा जाता है- कारसाज़, यानी करने में सक्षम। इसीलिए भगवान के बारे में कहा जाता है कि ऊपर वाला बड़ा कारसाज़ है। कार का ही संक्षिप्त रूप है कर। इससे बना- करतूत, करतब (जो कर्तव्य का अपभ्रंश नहीं है)। इन थोड़े-से उदाहरणों से यह तो सिद्ध होता है कि 'कार' अपने-आप में स्वतंत्र शब्द या मूल धातु है, जिसमें नामा, साज आदि प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाए जा सकते हैं।
यदि 'कार' मूल धातु है, तो निश्चय ही उसमें उपसर्ग यानी प्रीफिक्स लगाकर कुछ और नए शब्द बनाना संभव होगा (उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते- उपसर्गों से धातु के अर्थ बदल जाते हैं, अन्यत्र ले जाए जाते हैं)। ऐसा ही एक शब्द बना सरकार।  'सर' उपसर्ग तो है ही, एक स्वतंत्र शब्द भी है। मसलन ग़ालिब का वह शेर, जिसमें वे कहते हैं- 'आह को चाहिए, इक उम्र असर होने तक। ...कौन जीता है, तेरी जुल्फ के सर होने तक।' यहाँ शायद सर का आशय विजय से है। ताश के एक खेल (29?) में भी सर शब्द का यही अर्थ लिया जाता है।
खैर..जिस सर की बात हम कर रहे हैं, वह उपसर्ग यानी प्रीफिक्स के रूप में प्रयुक्त है और 'कार' के साथ लगने पर सर्वोपरि या सबसे ऊँचा या व्यवस्था में शीर्ष पर बैठी हुई सत्ता का अर्थ देता है। इस लिहाज़ से 'सरकार' का अर्थ हुआ, वह जो समस्त तंत्र में सबसे उच्च आसन पर अवस्थित हो और इस नाते जो सब कुछ करने में सक्षम हो। इसी अर्थ में भगवान या इस पूरे विश्व के नियन्ता को भी सरकार कहा गया। उर्दू की कुछ कव्वालियों में सरकार-ए-मदीनाकहकर उसी का उल्लेख किया गया है। उर्दू के अशआर में माशूका को 'सरकार' कहकर संबोधित करने में भी उसका (महबूबा का) रुतबा बुलन्द करने का ही भाव है। एक ऐसा ही गीत है- ग़म का फसाना बन गया अच्छा! सरकार ने आकर मेरा हाल तो पूछा।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हमारा मंतव्य है कि 'सरकार' शब्द की व्युत्पत्ति के लिए श्रीकार्य या श्रीकरः से तो शायद ही हुई हो। अधिक उपयुक्त तो हमें यह सर+कार वाली व्युत्पत्ति ही लगती है।
उत्तर प्रदेश में सरकार यानी गवर्नमेंट के लिए 'शासन' शब्द खूब चलता है। उत्तर प्रदेश शासन- यहाँ यूपी गवर्नमेंट के लिए प्रचलित प्रतिपद है। 'शासन' शब्द निश्चय ही संस्कृत से आया है। इसकी मूल धातु है शास् जिसमें ल्युट् प्रत्यय लगने पर बना शासन। शासन की अर्थच्छटाएं समझनी हों तो शास् धातु से बने बांग्ला शब्द 'शास्ति' को देखें। बांग्ला में 'शास्ति' का अर्थ है-सजा यानी दंड। इसे अंग्रेजी में कहते हैं पनिशमेंट। परंपरागत रूप से शास्ति यानी दंड ही शासन का प्रमुख साधन था। डंडे के दम पर सरकार चलाना इसी को कहा जाता था। राजदंड इसी का प्रतीक है। आज भी, भारत सरकार के कुछ अधिकारी और पुलिस वाले डंडा लेकर अपना शासन चलाते हैं। डंडा न हो तो कोई उनकी बात नहीं सुनता। अनपढ़, ढोर, गंवार टाइप जनता को नियंत्रित करने का कोई और कारगर उपाय हो भी तो नहीं सकता।

Monday, 14 September 2015

गालियों का मनोविज्ञान



गालियों का मनोविज्ञान
लोग गालियाँ क्यों देते हैं? इसकी व्याख्या करने की ज़रूरत नहीं। लोग गुस्से में गाली देते हैं। बहुत खीझ जाते हैं, झुंझला उठते हैं, किलस जाते हैं, फ्रस्ट्रेट हो जाते हैं, तब लोग गालियाँ देते हैं। गाली एक सेफ्टी वाल्व है, जिसके माध्यम से मन की भड़ास निकल जाती है। सुनने में गालियाँ चाहे जितनी खराब लगें, लेकिन यदि भाषा में गालियाँ न होतीं तो लोग अपना गुस्सा मुँह से, शब्दों या ध्वनियों के रूप में न निकालकर किसी और रूप में, मार-पिटाई के ज़रिए, खून-खराबा करके या किसी और विध्वंसक तरीके से निकालते। गाली का हमारे संसार में होना, एक प्रकार से अच्छा है।
गुस्से में ही नहीं, कई बार लोग प्यार में भी गाली देते हैं। विश्वास न हो तो बैंडिट क्वीन जैसी फिल्में देखिए। अपने देश का एक समाज ऐसा भी है, जो बहुत प्यार आने पर भी गाली देता है। 'साली.. बहुत नखरे करती है।'ऐसे डायलॉग तो आपने सुने ही होंगे।
खैर...यह तो केवल भूमिका है। असल सवाल यह है कि सारी गालियाँ किसी न किसी रूप में औरत जात के नाम क्यों हैं? ज्यादातर गालियों का केन्द्रीय भाव है सेक्स और सेक्स का केन्द्रीय भाव है औरत। जितनी भद्दी गाली होगी, उतना भद्दा होगा औरत के साथ सेक्स को जोड़ने का भाव।
सौम्यतावश मैं यहाँ उन गालियों का आख्यान, कथन या पुनर्कथन नहीं कर रहा। किन्तु अध्ययन करना चाहें तो करके देखें, हमारी सारी गालियों का केन्द्रीय पात्र कोई न कोई औरत है, चाहे वह माँ हो या बहन, या फिर बेटी। महिला के साथ गलत तरीके से यानी ज़बर्दस्ती, वीभत्स और कुत्सित सेक्स क्रिया का आख्यापन हमारे समाज में गाली है। इसमें दो बातें मुख्य रूप से उभर कर सामने आती हैं। पहली तो यह कि महिला सेक्स की विषयवस्तु है। और दूसरी यह कि सेक्स या वासना का संबंध स्थापित करने से महिला की पवित्रता भंग होती है, जो उसके लिए सबसे गर्हित स्थिति है।
इसका आशय यह हुआ कि महिला का अपमान करना है, उसे गौरव के पद से च्युत करना है तो उसके साथ ज़बर्दस्ती सेक्स संबंध बनाया जाए। यदि वह भी संभव न हो ऐसे सेक्स संबंध का उल्लेख करके उसे अपमानित किया जाए। पुरुष के साथ यह स्थिति नहीं है। कोई महिला यदि किसी पुरुष से नाराज हो तो वह ऐसी बात करने या कहने का सोचेगी भी नहीं, क्योंकि ऐसा करने से पुरुष की मर्यादा पर कोई आँच नहीं आएगी, अलबत्ता उसके पुंसत्व का और मंडन ही होगा. जबकि स्त्री के साथ ऐसा करने पर उसकी मर्यादा तार-तार हो जाएगी। यही है हमारा महिला-विरोधी और पुरुष-वादी सोच।
यही कारण है कि समाज में जितनी भी गालियाँ हैं, उनमें से अधिकतर के केन्द्र में महिला है और उसके भी केन्द्र में है सेक्स, ऐसा सेक्स जो महिला की मर्यादा को चिन्दी-चिन्दी कर देता है। पुरुषों पर केन्द्रित एकाधी गाली है भी तो वह भी सेक्स (अस्वाभाविक सेक्स) पर केन्द्रित। 
पुरुष भी अपने परिवार की महिलाओं की अस्मत के प्रति सचेत होता है। इसलिए जब उनको इंगित करके कोई गाली देता है तो वह तिलमिला उठता है। गाली देनेवाला गाली के माध्यम से प्रतिद्वन्द्वी पुरुष के अहं पर चोट करके उसे मानसिक पीड़ा देना चाहता है। यह पीड़ा सबसे ज्यादा तब सालती है, जब महिलाओं को लेकर अनैतिक सेक्स को केन्द्र में रखते हुए कोई गाली देता है।  तो  यह है गालियों का मनोविज्ञान।